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2019 के आम चुनाव में BJP और मायावती के नतीजों पर कैसे असर डाल सकता है चंद्रशेखर 'रावण'
राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के विवादास्पद आरोपों में एक साल के लिए जेल भेजे गए चंद्रशेखर को हाल ही में रिहा किया गया है, और वह मायावती के दलित पॉवरहाउस के दर्जे को चुनौती देते दिख रहे हैं...
उत्तर प्रदेश की एक जेल से रिहा होने के ठीक 24 घंटे बाद चंद्रशेखर रावण ने सहारनपुर जिले में स्थित अपने घर से फोन पर बात करते हुए NDTV को बताया, "मैं देश के हर दलित से कहना चाहता हूं कि 2019 में BJP सरकार को उखाड़ फेंके... जो भी ऐसा करने का इच्छुक दिखाई देगा, हम उसे समर्थन देंगे..."
राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के विवादास्पद आरोपों में एक साल के लिए जेल भेजे गए चंद्रशेखर को हाल ही में रिहा किया गया है, और वह मायावती के दलित पॉवरहाउस के दर्जे को चुनौती देते दिख रहे हैं... वह 30 साल के हैं, मायावती की उम्र 62 साल है... पिछले सप्ताहांत ही मायावती ने उनकी बहुजन समाज पार्टी (BSP) द्वारा चंद्रशेखर को नज़दीक आने देने से जुड़े सवालों पर बेहद गुस्से में प्रतिक्रिया दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरा लगातार कार्यकाल मिलने से रोकने के लिए विपक्ष की कोशिशें कामयाब होंगी या नहीं, इसके लिए BJP-विरोधी गठबंधन में मायावती की शिरकत बेहद अहम है... रविवार को आयोजित कार्यक्रम NDTV युवा में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि वह देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में बनने वाली साझेदारी में मायावती को सम्मानजनक स्थान देने के लिए तैयार हैं... गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश से लोकसभा में 80 सांसद चुनकर जाते हैं...लेकिन राष्ट्रीय दल होने के नाते एकजुट विपक्षी मोर्चे की सबसे अहम कड़ी कांग्रेस के साथ मायावती की बातचीत दिसंबर से पहले चुनाव का सामना करने जा रहे तीन राज्यों - राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ - के लिए अब तक सिरे नहीं चढ़ी है... इन तीनों राज्यों में BJP की सरकार है, और यहां BJP को लगने वाली कोई भी चोट 2019 के आम चुनाव के लिए ट्रेंड तय कर सकती है... रविवार को 'बहन जी' के नाम से मशहूर मायावती ने एक बार फिर अपने मशहूर गुस्से का प्रदर्शन किया, और कहा, वह किसी भी ऐसे गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगी, जिसमें उनकी पार्टी को उसका जायज़ हिस्सा नहीं दिया जाएगा...
BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की राजनैतिक चतुराई तथा विपक्ष के पंजे से मायावती को बाहर खींचने के लिए कहे गए उनके शब्दों की पृष्ठभूमि में चंद्रशेखर 'रावण' का इस समय जेल से रिहा होना उनकी पार्टी को राजनैतिक रूप से काफी मदद दे सकता है, और वह दावा कर सकते हैं कि अगर मायावती साथ नहीं देती हैं, तो वह आसानी से उनकी जगह ले सकते हैं...
चंद्रशेखर ने BJP के साथ किसी भी तरह का ढका-छिपा समझौता होने से इंकार करते हुए NDTV से कहा, "वे मेरे लोगों के दुश्मन हैं..." घनी मूंछें रखने वाले कानून के स्नातक चंद्रशेखर ने वर्ष 2014 में अपने जैसे युवा दलितों के लिए भीम आर्मी लॉन्च की थी. अपने नाम के साथ उन्होंने 'रावण' भी इसलिए जोड़ा था, ताकि वैचारिक रूप से 'हिन्दुत्व' से अपनी दूरी दिखाई जा सके, क्योंकि हिन्दू पौराणिक कथाओं में 'रावण' ही सबसे बड़ा खलनायक रहा है...संगठन का कहना है, उनका लक्ष्य नियमित स्कूलों में भेदभाव का शिकार होने वाले दलित बच्चों को शिक्षित करना तथा जातिगत अत्याचार से लड़ना है... संगठन को जल्द ही हज़ारों की तादाद में समर्थक मिल गए, जो बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान से थे... वर्ष 2017 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में ऊंची जाति तथा दलितों की भीड़ के बीच हुए दंगों के दौरान संगठन काफी चर्चा में रहा, जिसमें एक 'ठाकुर' को मार दिया गया था, और दलितों के घरों को जला दिया गया था...
मायावती ने प्रतिक्रिया में देरी कर दी, लेकिन चंद्रशेखर और भीम आर्मी दलितों के पैरोकार के रूप में नज़र आए. हिंसा के एक महीने बाद चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया गया... जेल में रहने के दौरान चंद्रशेखर की कथाएं फैलने लगीं, और उन्होंने न सिर्फ उनके दर्जे को ऊंचा किया, बल्कि उनके प्रभाव को भी बढ़ा दिया...
मायावती की ही तरह चंद्रशेखर भी जाटव हैं, जो एक उपजाति के रूप में कुल दलितों की आधी आबादी हैं, और उत्तर प्रदेश में कुल आबादी में 21 फीसदी दलित ही हैं...
अखिलेश यादव की ही तरह चंद्रशेखर ने भी NDTV से बातचीत में कहा कि मायावती उनकी 'बुआ' (पिता की बहन) हैं, और वह ऐसे किसी शख्स की आलोचना नहीं कर सकते, जिनके जीवन संघर्ष ने राष्ट्रीय राजनीति में दलितों के लिए स्थान बनाने का मार्ग प्रशस्त किया... उन्होंने कहा, "वह राजनैतिक ज़रियों से दलितों को सशक्त करती रहें, जबकि हमारा फोकस उनकी सामाजिक और आर्थिक बेहतरी की तरफ है... आखिरकार हम दोनों की रगों में एक ही खून है, और हमारे लक्ष्य भी समान हैं..."
लेकिन दूसरी ओर से मिलती-जुलती प्रतिक्रिया नहीं आई... सप्ताहांत में मीडिया से बात करते हुए मायावती ने कहा, "मैं साफ कर देना चाहती हूं कि मेरी किसी से 'बुआ-भतीजा' की रिश्तेदारी नहीं है... अगर उनके दिल में भी दलितों के हित होते, तो तो वह BJP से मिलकर लड़ने के लिए मेरे पास आते, अपना अलग संगठन खड़ा कर हमारे लोगों को नहीं बांटते... इससे सिर्फ BJP को मदद मिलेगी, वह हारेगी नहीं..."
यह पहला मौका नहीं है, जब मायावती ने चंद्रशेखर पर 'BJP की डमी' होने का आरोप लगाया हो... लेकिन चंद्रशेखर के समर्थकों का दावा है कि मायावती समुदाय में उभर रही 'युवाशक्ति' से डरती हैं, जो बदलाव चाहती है...
हाल ही में भीम आर्मी में शामिल होने वाले सहारनपुर के 25-वर्षीय वकील राजेश गौतम का कहना है, "रामविलास पासवान तथा रामदास अठवले जैसे मुख्यधारा के दलित नेताओं ने सत्ता में बने रहने के लिए सामंती तथा सांप्रदायिक ताकतों से समझौता कर बार-बार समुदाय को धोखा दिया है... मायावती भी चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के बावजूद हमारी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं... आज वे सभी लोग भीम आर्मी से घबराए हुए हैं, क्योंकि पुरानी दलित पार्टियां अगली पीढ़ी की उम्मीदों से कतई परे हैं, और पहले से ज़्यादा अप्रासंगिक लगने लगी हैं..."वर्ष 2014 (लोकसभा चुनाव) में मायावती एक भी सीट नहीं जीत पाई थीं... राज्य विधानसभा के लिए तीन साल बाद हुए चुनाव में भी वह 403 में से सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाईं... उधर, अखिलेश यादव भी मुख्यमंत्री के रूप में चुनाव हार गए, सो, दोनों की अलग-अलग रहकर हुई इन पराजयों ने उन्हें विवश कर दिया कि वे लम्बे अरसे से चली आ रही लड़ाई को खत्म करें, और BJP के खिलाफ एकजुट हो जाएं... इसके बाद हुए तीन अहम उपचुनावों में उन्होंने BJP को हरा दिया - और अचानक मायावती फिर मैदान में लौट आईं, ऐसे खिलाड़ी के रूप में, जिसे दोनों टीमें - विपक्ष तथा सत्तापक्ष - अपने साथ लेना चाहेंगी...
लेकिन मायावती वास्तव में अपने राजनैतिक पुनर्जन्म की आशा तब तक नहीं कर सकती हैं, जब तक वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उन्हें मिलता रहा समर्थन वापस हासिल न कर लें, जहां जाटवों और पिछड़े वर्गों की तादाद तो बहुत है ही, पसमांदा मुस्लिम भी खासी तादाद में हैं...
42 फीसदी मुस्लिम और 22 फीसदी दलित आबादी के साथ सहारनपुर BSP का गढ़ रहा है, जहां अतीत में मायावती की पार्टी दो बार संसदीय चुनाव जीत चुकी है... वर्ष 2014 में सब कुछ बदल गया, जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलितों ने अपने नेताओं को भुला दिया, और प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को जिताने के लिए वोट दिया... वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी मायावती सहारनपुर की पांच में से एक भी सीट जीतने में नाकाम रहीं...इसके बाद मायावती को अपनी छवि को पूरी तरह बदल डालने के लिए कदम उठाने पड़े... सिर्फ चुनावी रैलियों में जनता के सामने जाने की आदत को भुलाकर वह जातिगत हिंसा के पीड़ित दलितों से मिलने के लिए सहारनपुर गईं, और उसके बाद उन्होंने नाटकीय अंदाज़ में राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया, और सरकार पर आरोप लगाया कि फसाद के मुद्दे को संसद में उठाने की कोशिश करने पर सरकार की तरफ उनकी आवाज़ को दबाया गया...
अब 2019 के आम चुनाव से पहले चंद्रशेखर को रोकने की उनकी कोशिशों को 'ओछी हरकत' के तौर पर देखा जा रहा है...
कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने कहा, "वह (मायावती) बड़े कद वाली राष्ट्रीय स्तर की नेता हैं... एकजुटता दिखाने के लिए उन तक पहुंचने की कोशिश करने पर भी चंद्रशेखर को मायावती द्वारा खारिज कर दिया जाना उनका अक्खड़पन था..." इमरान मसूद उन नेताओं में से एक हैं, जो चंद्रशेखर की रिहाई के बाद सबसे पहले उनसे मिले, क्योंकि वह जानते हैं कि भीम आर्मी मुस्लिमों में भी पैठ बनाती और बढ़ाती जा रही है...